Spermatogenesis(शुक्राणुजनन)

Spermatogenesis(शुक्राणुजनन)




Spermatogenesis (शुक्राणुजनन) की प्रक्रिया सभी प्राणियों में एक gametogenesis की process का भाग है , जो की नर (male) प्राणियों के वृषण में होती है।

1) आदिजनन कोशिकाओं का उद्गम (origin of germinal cells) :- 

शुक्राणु या अण्डाणु दोनो जनन कोशिकाएं आद्यजनन कोशिकाओं (germinal cells) से उत्पन्न होती है। सभी कशेरूकों में निषेचित अण्डे में बहुत पहले ही जर्मप्लाज्म और सीमेटोप्लाज अलग – अलग विभेदित हो जाते है और आदिजनन कोशिकाएं वर्धी ध्रुव ( vegetal pole ) पर पायी जाती है अर्थात एंडोडर्म में विकसित होती है और वयस्क में ये कोशिकाएं जनदो में (gonads ) मे पहुंच जाती है।

2) शुक्राणुजन का स्थल (Location of spermatozoa) :- 

शुक्राणुजन नर के वृषण (testes) मे शुक्राणुधर नलिकाओं ( Seminiferous Tubules ) मे होती है। वृषण में यही अंतराली कोशिकाएं नर हार्मोन ( Testosterone ) का स्त्राव करती है।
शुक्राणुधर नलिकाएं ( Seminiferous Tubules ) -> यह कुण्डलित नलिकाएं है। यह बहुस्तरीय जनन उपकला की बनी होती है, एक अनुप्रस्थ काट मे जनन उपकला शुक्राणुजनन (spermatogenesis) की विभिन्न प्रवस्थाओ को दर्शाने वाली कोशिकाओं की बनी दिखाई देती है, जिनका क्रम आधारीय कला पर निम्न प्रकार होती है: 

स्पर्मेटोगोनियम - प्राइमरी स्पर्मेटोसाइट - सेकेंडरी स्पर्मेटोसाइट - स्पर्मेटिड - शुक्राणु ।

                          शुक्राणु परिपक्व होकर शुक्राणुधर नलिका ( Seminiferous tubule ) की गुहा मे गिर जाते है। इस क्रिया को स्पर्मेटीएसन (spermatietion ) कहते है। Seminiferous tubules की उपकला मे spermatogonium के बीच मे बड़ी कोशिकाएं होती है। इन्हे सरटोलाई कोशिकाएं ( sertoli cells ) कहते है। यह विकासमान शुक्राणुओं की विभिन्न अवस्थाओं को आधार प्रदान करती है और पोषण पहुंचाती है। शुक्राणुजनन (spermatogenesis) एक जटिल क्रिया है। इस क्रिया का अध्ययन दो भागो मे किया जा सकता है- 

(A) स्पर्मेटिड्स का निर्माण (formation of spermatids or spermatilogenesis) - 

Spermatogenesis (शुक्राणुजनन) की प्रक्रिया के पूर्व । Spermatid का निर्माण टेस्टीज (testes) की जर्मिनल एपिथिलियम (epithilium) कोशिकाओं द्वारा होता है। इस क्रिया को निम्न तीन प्रवस्थाओं मे बाँट सकते है - 
Spermatogenesis(शुक्राणुजनन)


(i) गुणन प्रावस्था (Multiplication phase) - 

यह spermatogenesis (शुक्राणुजनन) की पहली अवस्था है। वृषण की शुक्रजनन नलिकाओं ( seminiferous tubules) को आस्तरित करने वाली जर्मिनल एपीथिलियम की प्रारंभिक जनन कोशिकाएं प्राथमिक जनन कोशिकाएं (primary germ cells) कहलाती है। गुणन प्रावस्था में प्राथमिक जनन कोशिकाएं समसूत्री (mitosis) विभाजन के द्वारा बार बार विभाजित होती है। जिससे बहुत - सी कोशिकाएं बन जाती है। विभाजन के फलस्वरूप बनी ये कोशिकाएं spermatogonia (स्पर्मेटोगोनीया) कहलाती है। प्रत्येक स्पर्मेटोगोनीया मे गुणसूत्रों की संख्या 2N होती है।

(ii) वृद्धि प्रावस्था (growth phase) - 

यह spermatogenesis (शुक्राणुजनन) की दूसरी अवस्था है। प्रावस्था मे स्पर्मेटोगोनियल कोशिकाएं अब जर्मिनल एपीथिलियम कोशिकाओं से पोषक पदार्थ लेकर आकार मे वृद्धि करने लगती है। इन वृद्धि प्राप्त कोशिकाओं को प्राथमिक शुक्राणु कोशिकाएं या spermatocytes कहते है। इन कोशिकाओं में शुरू में न्यूक्लियस (nucleus) ka आकार सामान्य होता है। लेकिन इनका आकार कुछ समय बाद पदार्थों के स्वांगीकरण से बढ़ जाता है। इस प्रकार प्रौढ़ एवं परिपक्व स्पर्मेटोसाइट का न्यूक्लियस स्पर्मेटोगोनीया (spermatogonia) से अधिक बड़ा हो जाता है। केंद्रक में अर्धसुत्री विभाजन की प्रथम प्रोफेज की पैकिटीन तक की अवस्थाएं पूर्ण हो जाती है, किंतू कोशिका विभाजन नहीं होता है। अब प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट रिडक्शन डिवीजन के लिए तैयार हो जाती है। अब स्पर्मेटोगोनियल कोशिका को प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट कहते है। 

(iii) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase) -

यह spermatogenesis (शुक्राणुजनन) की 3सरी अवस्था है। इस अवस्था मे स्पर्मेटोसाइट दो बार विभाजित हो जाता है । प्रथम विभाजन अर्द्ध-सूत्री विभाजन (meiosis division) होता है, जिसमे यह दो अगुणित कोशिकाएं (Haploid cells) बनाती है, जिन्हे द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट कोशिकाओं मे द्वितीयक परिपक्वन (secondary Maturation) विभाजन होता है, जो समसूत्री होता है। इस प्रकार दो परिपक्वन विभाजनो के द्वारा प्रत्येक spermatogonium चार अगुणित (Haploid) कोशिकाएं बना देती है , जिन्हें स्पर्मेटिड कहते है। प्रत्येक स्पर्मेटिड मे केवल एक सेट (n) गुणसूत्र ही रहते है । 

(B) Spermeiogenesis or spermateleosis द्वारा स्पर्म या स्पर्मेटोजोआ मे परिवर्तन -

   Spermatogenesis (शुक्राणुजनन) में परिपक्वन विभाजनों के फलस्वरूप बना स्पर्मेटिड एक सामान्य प्राणि कोशिका के समान होता है जिसमे माइटोकोंड्रिया , गोल्जीकाय , सेंट्रियोल(centriole) व एक अगुणित केंद्रक (Haploid nucleus) आदि रचनाएं होती है। Spermeiogenesis / Spermateleosis के समय इनके आकार एवं कोशिकीय घटकों मे आपेक्षिक स्थिति मे परिवर्तन हो जाते है और निश्चल व गोलाकार स्पर्मेटिड एक सक्रिय व चल शुक्राणु मे बदल जाता है। ये परिवर्तन निम्न प्रकार से होते है :- 
Spermatogenesis(शुक्राणुजनन)

1. केंद्रक मे परिवर्तन :- 

Spermatogenesis (शुक्राणुजनन) में केंद्रक मे से पानी के क्षय होने से निर्जलीकरण से केंद्रक सिकुड़ जाता है और गुणसूत्र और अधिक संघनित हो जाते है। क्रोमेटिन पदार्थ और हिस्टोन प्रोटीन को छोड़कर सभी पदार्थ बाहर निकाल दिए जाते है । RNA भी निष्कासित कर दिया जाता है । इसके फलस्वरूप शुक्राणु का भार कम हो जाता है और यह तेजी से आगे बढ़ सकता है । साथ ही RNA व अन्य संबद्ध पदार्थों का भी क्षय हो जाता है। केंद्रक में केवल आनुवांशिक पदार्थ डी - ऑक्सीराइबोन्यूक्लियो प्रोटीन ही शेष रहते है।
2. गोलाकार केंद्रक लंबा व संकरा हो जाता है। मनुष्य व साँड में ये अण्डाभ (ovoid) होता है।

3. Centriole में परिवर्तन :- 

Spermatogenesis (शुक्राणुजनन) में स्पर्मेटिड के सेंट्रोसोम में दो centriole होते है । ये दोनो केंद्रक के ठीक पीछे स्थित हो जाते है । इनमे से एक केंद्रक के पीछे भाग में बने गड्ढे में चला जाता है , इसे समीपस्थ centriole कहते है । दूसरे centriole को दूरस्थ centriole कहते है, यह समीपस्थ centriole के पीछे स्थित होता है। और इसका अक्ष शुक्राणु के लंबवत अक्ष के साथ होता है । दूरस्थ centriole से कशाभिका का अक्षीय तंतु (Axial filament) निकलता है । अतः यह आधार कणिका (basal body) का कार्य करता है।

4. माइटोकांड्रिया में परिवर्तन -

Spermatogenesis (शुक्राणुजनन) में स्पर्मेटिड के विभिन्न भागो के माइटोकांड्रिया शुक्राणु के मध्य भाग में अक्षीय तंतुओं के आधार भाग तथा दूरस्थ centriole के चारो - ओर एकत्रित हो जाते है । धीरे - धीरे माइटोकांड्रिया परस्पर समेकित होने लगते है और अंत में अक्षीय तंतु के प्रत्येक ओर एक एक संकुचित काय का रूप ले लेते है । बाद में ऐंठकर अक्षीय तंतु के चारो ओर सर्पिलाकार आच्छद बनाते है । इस आच्छ्द को नेबेंकर्न (nebenkern) कहते है । आच्छद मे वलनो की संख्या में बहुत विविधता होती है । सर्पिल आच्छ्द शुक्राणु को अंडाणु की ओर गमन करते समय ऊर्जा व सामर्थ्य प्रदान करता है ।

5. एक्रोसोम का निर्माण :- 

Spermatogenesis (शुक्राणुजनन) की प्रक्रिया में स्पर्मेटिड का गॉल्जी उपकरण शुक्राणु का एक्रोसोम बनाता है जो केंद्रक के ऊपर एक टोपी - सी बनाता है । गॉल्जी उपकरण में उपस्थित hyaluronidase enzyme संघनित होकर एक्रोसोम बनाता है । कायांतरण के समय कोशिकाद्रव्य का क्षय हो जाता है और शेष बचा कोशिकाद्रव्य शुक्राणु के परिधिय भाग के चारो ओर एक संघनित स्तर बना लेता है । यह मध्य भाग तथा सिर के पिछले भाग के चारो ओर स्थित होता है। 

6. शुक्राणु के पुच्छ का निर्माण :- 

Spermatogenesis (शुक्राणुजनन) की प्रक्रिया में centriole के समीपस्थ (proximal) तथा दूरस्थ (Distal) centriole में विभाजन होने के पश्चात समीपस्थ centriole केंद्रक के पश्च सिरे पर एक गड्ढे में स्थित हो जाता है और दूरस्थ centriole लंबा हो जाता है । यह पुच्छ के axial filament (तंतु) का निर्माण करता है । Axial filament के चारो ओर कोशिकाद्रव्य की एक परत रह जाती है तथा प्लाज्मा membrane का आवरण रहता है । 

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