माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) | Mitochondria notes in hindi

माइटोकॉन्ड्रिया  (Mitochondria)

माइटोकॉन्ड्रिया ग्रीक भाषा के दो शब्द mitos + chondria से मिलकर बना है जिसका अर्थ है - mitos = thread (धागा), chondria = granule or particle (कण) होता है।  

माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाओं का श्वसनांग होता है, जिसमें भोज्य पदार्थों के आक्सीकरण के परिणामस्वरुप ऊर्जा मुक्त होती है। यह ऊर्जा जीवधारियों की विभिन्न क्रियाओं के काम आती है। यह ऊर्जा ATP के रूप में उत्पन्न होती है । इसलिए इसे कोशिका का विद्युत् गृह (Power House of the Cell) भी कहते है।  

माइटोकॉन्ड्रिया  (Mitochondria)

  • कोशिका के अन्दर नई माइटोकॉन्ड्रिया का निर्माण पूर्ववर्ती माइटोकॉन्ड्रिया से कलिकायन से बनी प्रोटोमाइटोकॉन्ड्रिया के विकसित होने से होती है। 
  • माइटोकॉन्ड्रिया को सर्वप्रथम कोलिकर (Kollikar, 1850) नामक वैज्ञानिक ने देखा । 
  • फ्लेमिंग (Flemming, 1882) ने माइटोकॉन्ड्रिया के लिए फीलिया (Filia) नाम दिया। 
  • अल्टमान (Altman, 1890) ने इसके लिए बायोप्लास्ट (Bioplast) नाम प्रस्तावित किया। 
  • माइटोकॉन्ड्रिया के विस्तृत अध्ययन का श्रेय कार्ल बेंडा (Carl Benda, 1897) नामक वैज्ञानिक को जाता है।
  • इसे प्लास्टोसोम , प्लास्मोसॉम्स , वर्मीक्यूल्स, कॉन्ड्रियोसोम्स, आदि नामों से पुकारा जाता है। 
  • माइटोकॉन्ड्रिया कोशिका में अधिक ऊर्जा उत्पादन वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 
  • इनकी लम्बाई 0.3 म्यूक्रान से 4.0 म्यूक्रान तक तथा व्यास 0.2 म्यूक्रान से 2 म्यूक्रान तक होता है।
  • पादप कोशिकाओं में इनकी संख्या जन्तु कोशिकाओं की तुलना से अपेक्षाकृत कम होता है। 

वितरण (Distribution) - 

माइटोकॉन्ड्रिया मुख्यत: यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में पाया जाने वाला कोशिकांग है। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में इनका अभाव होता है। उपापचयी क्रियाओं में संलग्न कोशिकाओं में इनकी संख्या अधिक होती है।  

माइटोकॉन्ड्रिया की परासंरचना (Ultrastructure of Mitochondria) - 

पैलेड (Palade) एवं स्जोस्ट्रैंड (Sjostrand) ने 1940-50 में माइटोकॉन्ड्रिया की अतिसूक्ष्म रचना का इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की सहायता से अध्ययन किया। 

इसकी परासंरचना निम्नानुसार होती है - 

1. प्रत्येक माइटोकॉन्ड्रिया द्विस्तरीय झिल्ली द्वारा घिरा रहता है। इसकी बाहरी झिल्ली लचीली होती है। अन्दर की झिल्ली में अनेक उभार या प्रवर्धन निकले होते है और दोनों रचना और कार्य में भिन्न होती है। 

• बाहरी मैंम्ब्रेन (Outer membrane) - 

यह माइटोकॉन्ड्रिया का बाहरी आवरण बनाती है । इसकी मोटाई 60 Å से 70 Å तक होती है। यह चिकनी एवं रचना में की तरह होती है तथा ER की मैंम्ब्रेन्स से समजतता प्रदर्शित करती है।

• भीतरी मैंम्ब्रेन (Inner membrane) - 

यह बाहरी मैंम्ब्रेन के नीचे स्थित होती है तथा इसकी मोटाई भी 60 Å से 70 Å तक होती है। माइटोकॉन्ड्रिया की रचना में इस मैंम्ब्रेन का प्रमुख स्थान है। यह मैंम्ब्रेन माइटोकॉन्ड्रिया की भीतरी गुहा में अंगुली के समान उभार या पटो के रूप में व्यवस्थित रहती है। इन उभरी हुई रचनाओं को माइटोकॉन्ड्रियल क्रिस्टी (Mitochondrial cristae) या क्रेस्ट (Crest) कहते है।  

2. चैम्बरस या कक्ष (Chambars) - 

माइटोकॉन्ड्रिया के अन्दर दो पाए जाते है - 

• बाहरी कक्ष (Outer chamber) - 

दोनों झिल्लियों के बीच की जगह को बाहरी वेश्म (Outer chamber) या पेरीमाइटोकॉन्ड्रियल स्पेस (Perimitochondrial space) कहते है। इसकी चौड़ाई 6080 तक होती है जो वास्तव में की दोनों मैंम्ब्रेन्स के बीच की दूरी है। इसमें एक पतला द्रव भरा रहता है जिसमें अनेक को - एंजाइम्स (Co-enzymes) पाए जाते है। 

• भीतरी कक्ष ( Inner chamber) - 

यह माइटोकॉन्ड्रिया के अन्दर भीतरी मैंम्ब्रेन के द्वारा घिरी रहती हुई गुहा है जो एक सघन द्रव द्वारा भरी रहती है। इस सघन द्रव को माइटोकॉन्ड्रियल मैट्रिक्स (Mitochondrial matrix) कहते है। यह जेल (gel) जैसा पदार्थ है तथा छोटे अणुओ एवं घुलनशील प्रोटींस से युक्त होता है। इसमें कुछ महीन तंतु तथा कणिकाऐं भी होती हैं। कणिकाऐं Mg++ तथा Ca++ आयनों को बांधती है।  

माइटोकॉन्ड्रियल कण (Mitochondrial Particles) -  

इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के द्वारा यह स्पष्ट रूप से ज्ञात हो चुका है कि माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी मैंम्ब्रेन की बाहरी सतह पर तथा भीतरी मैंम्ब्रेन की भीतरी सतह पर अत्यन्त सूक्ष्म कण चिपके हुए पाए जाते है। दोनों मैंम्ब्रेन के कण परिमाण तथा आकृति में भिन्न भिन्न होते है। 

बाहरी मैंम्ब्रेन के कण (Outer Membrane Particles) - 

ये कण साधारणतय गोल आकृती के होते है जिनका व्यास 60 Å तक होता हैं। ये बाहरी मैंम्ब्रेन की बाहरी सतह पर पास पास लगभग 80 Å दूरी पर चिपके रहते है।  

भीतरी मैंम्ब्रेन या F 1 कण (Inner membrane or F1 Particles) -

ये भीतरी मैंम्ब्रेन की भीतरी सतह या क्रिस्टी पर लगे होते है तथा रचना में जटिल होते है। इनमें से प्रत्येक की लम्बाई लगभग 160 Å होती है। ये कण टेनिस के रैकिट की आकृति के होते है तथा दो कणों के मध्य की दूरी 100 Å होती है। प्रत्येक भीतरी कण को तीन भागों में बांटा सकता है : (a) आधार (Base) - जिसका व्यास 80 Å होता है (b) वृंत (Stalk) - जो लम्बाई में 50 Å होता है तथा (c) हैड (Head) - जो व्यास में 33 Å होता है। प्रत्येक भीतरी कण या पार्टिकल प्रोटीन तथा फोस्फोलिपिड का बना होता है। भीतरी पार्टिकल्स को F1 पार्टिकल या ऑक्सीसोम्स या Elementary particles भी कहते है।  

रासायनिक संघटन (Chemical composition) -  

 माइटोकॉन्ड्रिया के रासायनिक संघटन का अध्ययन बेंसेल (Bensley), कोहन (Cohn) तथा हाल ही में मैलनिक तथा पैकर (Melnick and Pacjer, 1971) के द्वारा किया गया। इसके अनुसार विभिन्न जन्तुओ तथा पौधों में माइटोकॉन्ड्रिया का रासायनिक संघटन भिन्न भिन्न होता है। इसके अनुसार माइटोकॉन्ड्रिया में रासायनिक यौगिक का प्रतिशत निम्न प्रकार होता है - 

प्रोटिन्स ........65 to 70% 
लिपिडस ........ 25 to 30% लिपिडस का 90% भाग फॉस्फोलिपिडस , 5% कोलेस्ट्रॉल फैटी एसिड्स तथा ट्राईग्लिसरॉड्स होता है। 
RNA ...... 0.5% 
DNA ....... सूक्ष्म मात्रा  
बाहरी माइटोकॉन्ड्रियल मैंम्ब्रेन में फॉस्फोलिपिडस की मात्रा भीतरी मैंम्ब्रेन से अधिक पाई जाती है। बाहरी मैंम्ब्रेन में कॉर्डियोलीपिन भी प्रोटीन उपस्थित होती है।  

माइटोकॉन्ड्रियल एंजाइम्स (Mitochondrial Enzymes) - 

माइटोकॉन्ड्रिया के अन्दर 70 से भी अधिक एंजाइम्स तथा कोएंजाइम्स पाए जाते है जो क्रैब चक्र में भाग लेते है। ये एंजाइम माइटोकॉन्ड्रिया की बाहरी एवं भीतरी मैंम्ब्रेन तथा मैट्रिक्स में वितरित रहते है । 

माइटोकॉन्ड्रियल DNA (Mitochondrial DNA) - 

माइटोकॉन्ड्रियल DNA में गवानिन एवं सायटोसिन (Cytosine) की मात्रा अधिक पाई जाती है। माइटोकॉन्ड्रिया में सामान्य कोशिकीय RNA की तरह तीनों प्रकार के RNA (r -RNA, tRNA एवं mRNA) पाए जाते है। इसके राइबोसोमस् सामान्य राइबोसोमस् की तुलना में छोटे आमाप वाले होते है। माइटोकॉन्ड्रियल DNA में हिस्टोन नहीं पाया जाता है।  

कार्य :- 

1. यह एटीपी के रूप मे ऊर्जा प्रदान करता है।
2. इसमे कोशिकीय स्वसन के लिए एंजाइम पाए जाते है।
3. यह अपना कुछ प्रोटीन स्वयं बनाता है।
4. कोशिकीय ऊर्जा का संचय एवं निर्माण माइटोकोंड्रिया के द्वारा ही होती है।
5. आनुवांशिक पदार्थो के होने से माइटोकोंड्रिया विभाजित होता है और आनुवांशिक गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचते है।
6. माइटोकोंड्रियल डीएनए अपने स्वयं का m RNA, tRNA, तथा rRNA उत्पादित कर सकता है। 

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